क्यों करें तीर्थों का दर्शन?

ऊर्जा न तो नष्ट होती है और न ही पैदा की जा सकती है बल्कि इसे एक वस्तु से दूसरी वस्तु में अथवा रूप में स्थानांतरित किया जा सकता है। यह ऊर्जा का वैज्ञानिक सिद्धान्त है।

हम दिन भर जो भी कार्य करते हैं अथवा अपने चारों ओर जो भी घटनाएं होते हुए देखते हैं उसमें शारीरिक अथवा मानसिक प्रयास तथा कर्म होते हैं तथा हर प्रयास में शक्ति लगानी पड़ती है।

यह शक्ति ऊर्जा से उत्पन्न होती है। ऊर्जा का प्रवाह निरन्तर हमारे शरीर में होता रहता है तथा इस प्रवाह को हम अपने आस-पास भी महसूस करते हैं। ऊर्जा का यह निरन्तर प्रवाह हमारे जीवन को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।

हर व्यक्ति अपने लिए लक्ष्य निर्धारित करता है। कुछ लक्ष्य बड़े तथा दूरगामी होते हैं जबकि कुछ दैनिक तथा छोटे हैं। इन लक्ष्यों को पाने के लिए परिश्रम किया जाता है तथा परिश्रम के मूल्यानुसार परिणाम मिलता है।

लक्ष्य निर्धारण में किया गया आत्ममन्थन तथा उसे प्राप्त करने के लिए किये गये संघर्ष हेतु शारीरिक तथा मानसिक शक्ति अथवा ऊर्जा की आवष्यकता होती है। ’ शारीरिक शक्ति’ तथा ’इच्छाशक्ति’ इसी के नाम हैं।

कभी-कभी इच्छाशक्ति दुर्बल हो जाने से हम अपना लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाते अथवा लक्ष्य सिद्धि में शंका होती है। यह नकारात्मक ऊर्जा है जिसे हम ’ हताशा’, ’ निराशा’, आदि शब्दों से जानते हैं। इस नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह से हमारा व्यवहार, क्रियाकलाप आदि सभी चीजें प्रभावित होती हैं जिसके फलस्वरूप हम अपने आपको दुर्बल तथा हीन समझकर प्रयास करना बन्द कर देते हैं।

इस निराशा को दूर करने के लिए हम या तो बड़े-बुर्जुगों के पास जाते हैं या फिर भगवान तथा गुरू की शरण में जाते हैं ताकि हमें कोई मार्ग दिखे जो कि पुनः हमें कर्मभूमि पर ले जाए।

वस्तुतः ये सभी (बड़े, बुर्जुग, गुरू, मन्दिर आदि ) ऊर्जा के स्त्रोत हैं जो हमारे भीतर की नकरात्मक ऊर्जा को सकरात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं और हमारा मार्गदर्शन होता है। इसलिए हमारे धर्म में ’गुरू’ तथा ’मन्दिर’ के दर्शन का विशेष महत्व है। इन दोनों के दर्शन मात्र से ही सही ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है।

गुरू हमारी भांति मनुष्य स्वरूप में है किन्तु जिस पथ पर हम चल रहे हैं वह पथ वह पार कर चुके हैं। जबकि मन्दिर में रखी ईष्वर की प्रतिमा आस्था का स्वरूप है। जिसके सम्मुख हम नतमस्तक होकर आत्मसमर्पण कर देते हैं, परिणामस्वरूप इस प्रतिमा से निकलने वाली ऊर्जा हमारे मन में बुझे हुए दीपक को प्रज्वलित करके आलोकित करती है और हमें हर उलझन तथा समस्या छोटी लगने लगती है।

कुछ लोगों का मानना है कि गंगोत्री, हरिद्वार अथवा केदारनाथ जैसे धाम में जाने मात्र से ही उनकी परेशानियों का डर तथा चिंता समाप्त हो जाती है।

वास्तव में यह तो उस ’सकारात्मक ऊर्जा ’ का प्रभाव हैं जो उस तीर्थ में विद्यमान पौराणिक मन्दिर से निकल रही है। तीर्थों में स्थापित मन्दिर तो ऊर्जा के पावर हाउस की तरह होते हैं जो कि इतने शक्तिशाली होतें हैं कि भक्त कहते हैं कि उनके रोग ठीक हो गये जहाँ कुछ लोग उस ऊर्जा के प्रभाव से मानसिक विकृतियों से मुक्त हो जाते हैं वहीं कुछ लोग अपने मन में पल रहे वैराग्य को वहां जाकर सहर्ष स्वीकार कर सन्यासी हो जाते हैं।

अतः तीर्थों के दर्शन को अन्धविश्वाश तथा ढोंग न कहकर हमें वहां जाकर इस मधुर सत्य का रसपान करना चाहिए।

The following two tabs change content below.
Haridwar, really Gateway to God, is one of the Hindu holy places in India. Haridwar is a place where people come for spirituality, Yoga, Meditation, Inner Peace, and haridwar is also famous for Har Ki Pauri, Temples, Ashrams, Akhada, & how we can forget MAHA KUMBH....

Latest posts by AllinHaridwar (see all)